तक़दीर

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काँटे हो बेहिसाब तो राहो की क्या ख़ता जज़्बात है ख़ाली से तो लम्हात की क्या ख़ता और है एहसास मुझको भी  के वो है किसी और का कैसे करूँ शिकायत,इसमे ...

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