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खामोशी से सब कुछ चुपचाप सह जाता कैसे? बात मेरी इज़्ज़त-नफ़स की थी सर झुकाता कैसे? उनके तमाम इल्ज़ाम खामोशी से सुन रहा था मैं, मैं चराग़ अपनी ख़ुद्दारी का भला ...