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गगनांगना छंद (१६,९ पदांत २१२) चले घुमाने जगत दिखाने, पकड़े हाथ हैं। डर सब छू मंतर हो जाता, पापा साथ हैं। बड़े ध्यान से सुनते बातें, वो तो खास हैं। हम ...