लेखनी कविता - बिरह

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बिरहन सी हुई मैं हृदय व्यथित मेरा है प्रेम की छाया नहीं मन कलुषित हुआ है..  आच्छादित जीवन मेरा  मन भी विलग हुआ है प्रेम की तृष्णा समाप्त हुई अब एकांत ...

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