कुछ तो बाक़ी सा है

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कुछ तो बाकी सा है कहीं क्यों ये मन खोना चाहता है? न है तमन्ना दो गज़ ज़मी की और न ये उड़ना चाहता है। मन तो पंछी ,ये उड़ चला ...

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