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ना दिखती हक़ीक़त मुझे मेरे अपनों की. अगर मेरे कदम लदखाये ना होते. ना मिलती मंज़िल मुझे उस मुक़ाम पर.. अगर मैंने अपने आंसुओं से अपने राश्ते बनाये ना होते.. फ़िज़ा ...