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*धरती की करह* सुख-दुख और बलिदानों की चादर ओढ़े धरा। कितनी सुन्दर अनुपम धरती माँ करती खुद की चिंता ।। करवट बदलती ,करह कर कहती, हो रहा मेरा संहार पावन धरा ...