स्वैच्छिक ,ख्यालों मे बसी

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जो खयालों में बसी उसको भुलाऊॅं कैसे, डर है रुसवाई का दुनिया को दिखाऊॅं कैसे। ओस की बूंद सी पलकों पे सजी रहती है, गिर न जाये कहीं नजरों को झुकाऊॅं ...

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