ज़ख्मों को चुपकर सिये जा रहे हैं

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ज़ख्मों को चुपकर सिये जा रहे हैं  कभी तो मिलेगी सपनों की मंजिल, यही सोच लेकर जिए जा रहे हैं। जलाये रखा है चरागो को अब भी, तेरे इश्क का ग़म ...

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