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(हिस्सा- एक) मैं समाज से हूँ कटी-कटी मेरा मिज़ाज ज़रा है मुख़्तलिफ़ तू महफ़िलों की बात ना कर ये बात मुझको रुला ना दे मुझे दिल्लगी का शऊर नहीं मेरे शौक़ ...