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ऐ भारत ! क्या दूसरों की ही हां में हां मिला कर, दूसरों की ही नकल कर, परमुखापेक्षी होकर इस दासों की सी दुर्बलता, इस घृणित जघन्य निष्ठुरता से ही तुम ...