मेरे हमसफ़र

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तेरे सांचे में ढल गया आख़िर शहर सारा बदल गया आख़िर तेरी सांसो की गरमी से जाना ये पूरा बदन पिघल गया आखिर थे कुछ ख्वाब शाख से जुदा हुए सूखे ...

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