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चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए वैद बेचारा क्या करे, कहाँ तक दवा लगाए।। अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि चिंता एक ऐसी चोर है जो सेहत चुरा लेती ...