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समय का फेर जैसे ही पग आगे बढाया, कांटों ने था, बीज उगाया। शूल-शूल फिर फूल बने! जिगर की टीस से स्वप्न बुने। घोर अंधेरा छा रहा था, दीप निराशा से ...