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ज़ख्म कुछ गहरे थे मेरे ज़ख्म जिन्हें छेड़ रही थी लोगों की खिलखिलाहट भरी मुस्कान कैसे समझाऊं इस जहां को अपना हाल जिन्हें कुदरत का यह दर्द समझ ना आया मोहब्बत ...