नव सृजन।

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लेता हैं आकार , उसके गर्भ मे, जब आकर, कितनी,व्यंजनाएं, उपमाएं, लिपट रही हैं श्वास  दर श्वास, आ  जाकर,।। रोज एक नवीन स्वप्न का उदय, रोज एक नई परिकल्पना,, इतनी भाव ...

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