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् कविता--सुरमई सबेरा अंकुर था मिट्टी में सना उषा ने हौले से उसे सींच नहलाया, धरती चीर कांपती निकलीं हवाओं ने लोरी सुना उसको बहलाया, झूमती झूमती बढ़ती जाती मधुर मुस्कान ...