लेखनी कविता - अंत क्या आरंभ क्या सब कुछ तो अनंत है

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अंत क्या आरंभ क्या सब कुछ तो अनंत है अंत क्या आरंभ क्या सब कुछ तो अनंत है, कोई समझे न समझे सत्य तो सदैव विराजमान है। जो सदियों पहले था ...

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