सांझ
सांझ
छुपते सूरज की लाली जब आसमान पे छाए
उड़ते पंछी झुंड बना कर नीड़ को अपनी जाएं
गोधूली से सारा आलम धुंधला सा हो जाए
सांझ की बेला दस्तक देकर रजनी को बुलवाए।
थके कदम घर जाता पथिक कोई दिख जाए
कलश संभाले गांव की गोरी हिरनी सी अकुलाय
गली मोहल्ले में खुशबू जब हींग बघार की आए
सांझ की बेला दस्तक देकर रजनी को बुलवाए।
चौपाल में बैठ बुजुर्ग जब हुक्का गुड़गुड़ाये
गांव देश के किस्से जब महफिल को गरमाए
मंदिर की घंटी के संग संग भजन फिज़ा में छाएं
सांझ की बेला दस्तक देकर रजनी को बुलवाए।
गहराती लालिमा को समेट चांदनी जब खिल जाए
पप्पू, गुड्डी को जब अम्मा डांट के घर बुलवाएं
दूर क्षितिज पर चंदा मामा हौले से मुस्काएं
सांझ की बेला दस्तक देकर रजनी को बुलवाए।
आभार – नवीन पहल – २३.०२.२०२३ ☺️🙏
# प्रतियोगिता हेतु
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
03-Apr-2023 06:36 AM
Woow बहुत ही खूबसूरत रचना
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Alka jain
01-Mar-2023 07:07 PM
Nice 👍🏼
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Muskan khan
26-Feb-2023 09:33 PM
Nice
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