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मधुमास

*गीत*(16/16)
मधुमास
धन्यवाद मधुमास तुम्हारा,
लौट सजन घर आए मेरे।
रही देखती पथ मैं उनका-
रजनी-वासर,साँझ-सवेरे।

मस्त हवाओं से मैं कहती,
पुनर्मिलन-आभास कराओ।
कभी पूछती भी कलियों से,
कब होगा मधुमास बताओ?
कहे कली शरमा के झट-पट-
आ वसंत जब चित्र उकेरे ।।
      रजनी-वासर,साँझ-सवेरे।।

लगे तभी भौंरे मँडराने,
लेकर गंध कली मुस्काई।
पवन वसंती मस्त बहा जब,
प्रकृति सुंदरी ली अँगड़ाई।
अमराई में कोयल-खग-कुल-
करें सभी मिल नवल बसेरे।।
    रजनी-वासर, साँझ-सवेरे।।

लगा अंग शुभ वाम फड़कने,
दिल भी लगा धड़कने मेरा।
लगा दूर से कोई कहने,
आएगा अब साजन तेरा।
मैं पगली सज-सवँरी बैठी-
मिलन-भाव हिय धरे घनेरे।।
     रजनी-वासर,साँझ-सवेरे।।

हे मधुमास! करूँ मैं स्वागत,
तन-मन-धन से प्रति-पल तेरा।
नहीं लगा यदि होता जग में,
तेरा पुनि-पुनि अनुपम फेरा।
सम्भवतः यह सृष्टि न चलती-
रति-अनंग के नहीं चितेरे।।
      रजनी-वासर,साँझ-सवेरे।।
               °©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

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3 Comments

बहुत ही सुंदर और प्रेममय कविता

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Renu

26-Feb-2023 05:04 PM

👍👍🌺

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बहुत खूब

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