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पतझड़

टूटे जो पत्ते पेड़ों से
शाख शाख 🍂
मंज़र होता चहुं दिशाओं में
बोझिल बोझिल 🍂
उड़ते जो सूखे पत्ते करते
खड़खड़  खड़खड़ 🍂
आबाद मन न जाने फिर क्यों होता
सहमा सहमा 🍂
पेड़ों से पत्ते गिरते
जैसे-जैसे 🍂
मन का उचाटपन बढ़ता जाता
वैसे वैसे 🍂
तब नीरस सा लगता सब कुछ
बेरंग बेरंग 🍂
लाता व्याकुलता के सभी गहरे भाव
पतझड़ पतझड़ 🍂
फिर से बाहर आने तक का इंतजार करता फिर
ये मन ये मन🍂


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