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गाँव

गाँव

चलो चलें गाँवों की ओर,
बहे पवन शीतल-निर्मल।
प्रकृति-छटा बिखरी हर छोर,
नदी बहे कल-कल,छल-छल।।

खेतों की हरियाली देख,
कटे कष्ट सारे तन के।
पढ़कर प्राकृत अनुपम लेख,
मिटें शूल अंतर्मन के।।

चहुँ-दिशि पसरा अमृत-घोल,
प्रभु का मिले प्रसाद वहाँ।
रहे न जिसका कोई मोल,
मिटे सकल अवसाद जहाँ।।

मीठे वचन भरे सब घाव,
रहे एकता सब जन में।
नहीं प्रेम का यहाँ अभाव,
त्याग-भाव सबके मन में।।
 
आपस में है रहता मेल,
रहता नहीं यहाँ दुराव।
कोई नहीं सियासी खेल,
पाते सभी उचित सुझाव।।
     ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
         9919446372

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2 Comments

Sant kumar sarthi

06-Mar-2023 11:39 AM

सुंदर

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बहुत खूब

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