Dr

Add To collaction

गुलाबी




तू कितना मनहर लगती हो
चुपके-चुपके घर करती हो ।
नैन द्वार से भीतर जाकर
हृदय चाँदनी भर सकती हो ।।

मुख चंदा है होठ गुलाबी
ऑखे प्यारी लगे शराबी ।
कोमल देह नेह मतवाले
घायल मन मे हुई खराबी ।।

स्वेत वस्त्र मे स्वेत कमल हो
होता जाता मन पागल हो ।
तेरी सुधियों मे फस जाता
जैसे बहती गंगा जल हो ।।

डा दीनानाथ मिश्र

   7
2 Comments

Sachin dev

07-Mar-2023 07:31 PM

Nice

Reply

Renu

07-Mar-2023 05:06 PM

👍👍

Reply