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आँखो




देखा उसको तो भर गयी ऑखे
उडती जितनी रही कटी पाँखे ।
भीड दर्शन को थी कभी व्याकुल 
आज सूनी हुई वही साखे ।।

रूप ढलते ही ढल गयी राते
नही करता है अब कोई बाते ।
चाँदनी सी चमक पडी फीकी
कोई दिखता नही वहाँ जाते ।।

सारी दौलत बिखर गयी उसकी
सभी अब कह रहे तू है किसकी ।
छलक आयी भरी-भरी ऑखे
मुझ पर घायल नजर पडी उसकी ।।

डा दीनानाथ मिश्र


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3 Comments

Sachin dev

07-Mar-2023 07:32 PM

Nice

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Renu

07-Mar-2023 05:06 PM

👍👍

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Abhinav ji

07-Mar-2023 09:12 AM

Very nice

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