Anju Dixit

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वो कसक गहरी थी

जब हम तुमसे थे मिले,
वो शाम बहुत सिंदूरी थी।

कुछ पल ही रहा सुख साथी,

विछोह की कसक वो गहरी थी।

जब हम बिछड़े तुमसे
थे वो रात बहुत अँधेरी थी।


सब कहते चाँदनी रात है यह,
वो कहते स्याह घनेरी थी।


थी असीम वेदना ह्रदय में,
पलकों पर पीड़ा ठहरी थी।


सबकुछ था कितना दुखद,
सूनी नयनों की देहरी थी।


मन की व्यथा का अंत न था,
हर तरफ नीरसता घेरी थी।


जीवन की कोई इच्छा न थी,
मृत्यु ही लगती मीत सहेली थी।


पर जीवन का अंत तो हल नहीं ,
यह कहकर दिखायी राह सुनहरी थी।


बहुत पास हो तुम मेरे मैने खुदको समझाया,
मिट गया भेद सारा अब न बात कोई अधूरी थी।


तुम्हें बसा लिया मैने रग रग में,
हर वक्त पाया साथ तुम्हें न अब कोई भी दूरी थी।


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2 Comments

Swati chourasia

20-Sep-2021 06:40 PM

Very nice 👌

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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI

20-Sep-2021 02:07 PM

Nice

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