सिन्दूर
दैनिक काव्य प्रतियोगिता हेतु
विषय 'सिन्दूर ' पर मेरी प्रस्तुति
...........................सिन्दूर ............................
लौट आवो मदभरे नयनो की है सौगन्ध तुमको,
आंसुओं की धार निमन्त्रण दे रही है।
कसक वो बीते दिनो की हरदम पुकारा करती है तुमको,
यौवन रस की क़शिश तुम्हे पुकार रही है।
ये सिन्दूर ये मेंहदी ये माथे की बिन्दी,
शिकायत करती रहती हैं तुमसे रात और दिन,
धानी साड़ी ही पसन्द आती थी तुमको,
कौन चूमेगा आज मेरी साड़ी तुम बिन।
रोज ही सज-धज प्रतीक्षा करती तुम्हारी,
शाम तक ये आंखें अश्रु-प्लावित होतीं,
आज आओगे तुम ये आस रहती है इस दिल को,
सोचती हूं आज इस आशा को नहीं ठुकराओगे तुम।
किस चमन मे तुम रुके हो,कौन है बन्धन तुम्हारा,
तोड़ कर अब सारे बन्धन आज तो आ जाओगे तुम।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Renu
28-Mar-2023 09:28 PM
👍👍🌺
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
28-Mar-2023 08:33 AM
Nice poetry
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Reena yadav
28-Mar-2023 07:45 AM
👍👍
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