लेखनी कहानी -भिक्षुक का जादू भाग १
भिक्षुक का जादू भाग 1
बहुत समय पहले चीन के एक गांव में एक दिन एक अजनवी आए। एक बच्चा जिसका नाम फू नान था जो अपने माता-पिता के साथ गांव के बाहर फार्म में रहता था, सबसे पहले उस अजनबी से मिला। उसे लगा कि वो शायद एक घुमक्कड़ सन्यासी थे। वैसे भी उसने कहानियां सुन रखी थे – एक सन्यासी जो जादू कर सकते हैं। उस अजनवी को अचानक अपने सामने पाकर फू नान डर गया। लेकिन अजनबी का हाव-भाव बहुत ही शांत और उदारतापूर्ण था। फू नान ने विनम्रता पूर्वक उनका अभिवादन किया।
वृद्ध अजनवी ने कहा ‘कुछ समय रहने के लिए यह जगह अच्छी प्रतीत होती है । क्या तुम बता सकते हो कि मैं कहां सो सकता हूं। फू नान ने उन्हें एक वीरान कुटिया दिखाई जो गांव की सीमा पर स्थिति थी। वहां वृद्ध ने अपने लिए घास फूस का विस्तर बना लिया और दीवार पर एक कागज लटका दिया जिसमे बड़ी और बेढंडी लिखाई में कुछ शब्द चित्रित किए हुए थे।
वृद्ध उस झोपडी में निवास करने लगे। फू नान और उसके मित्र कुटिया की खिड़की से भीतर झाकते और वृद्ध की नींद से जागने की प्रतीक्षा करते। वृद्ध जब गांव में भिक्षा मांगने जाते तो बच्चों को उनके साथ रहना अच्छा लगता था। वो हमेशा प्रसन्न रहते थे और मौसम की ओर उनका ध्यान कभी ना जाता था। वर्षा हो या धूप वो वृद्ध वही पुराने सैंडल और जीर्ण शीर्ण लवादा पहने रहते थे। क्योंकि सब जानते थे कि घुमक्कड़ संन्यासियों ने निर्धन रहने का संकल्प लिया था। इसलिए गांव वाले प्रसन्नता से उन्हें चावल और सब्जियां दे देते थे।
फु नान ने उन्हें आगाह कर दिया था कि वह उस जिले के सबसे धनी व्यक्ति कंजूस किसान वू के पास कभी न जाए। जो भिक्षुक अंतिम बार उनके घर गया था, किसान वू ने उस पर अपने कुत्ते छोड़ दिए थे, ‘फु नान ने बताया।
क्योंकि बच्चे अक्सर उनके साथ रहते थे इसलिए उन्हें ही सबसे पहले पता चला की वृद्ध संन्यासी के पास कुछ अनोखी शक्तियां थी।