Madhu varma

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लेखनी कहानी -भिक्षुक का जादू भाग ४

भिक्षुक का जादू भाग 4

सन्यासी चौराहे के दूसरी तरफ रुक गए। उस छोटी नाशपाती को वह झटपट दांतो से काटकर खाने लगे। अंततः उनका एक छोटा काला बीज ही बचा।

पीठ पर लटकी एक थैली से उन्होंने एक फावड़ा निकाला। मिट्टी खोदकर एक गड्ढा बनाया और उसमें वह काला बीज बो दिया। “फू नान”, उन्होंने पुकारा, “केतली में उबला हुआ पानी लेकर आओ” निकट की एक चाय की दुकान से फू नान उबला हुआ पानी ले आया।

वृद्ध ने गर्म पानी मिट्टी में डाला, उसी पल एक हरा अंकुर मिट्टी से बाहर निकल आया। मिनटों में अंकुर पेड़ बन गया उसकी डालो पर पत्ती निकल आयीं। तितलियां और मधुमक्खियां आकर्षित होकर वहां आ गई। डालो पर पक्षी आकर गाने लगे।

कोपलें फूल बन गई। फूलों पर छोटी छोटी नाशपतियाँ निकल आई जो तुरंत ही पक कर सुनहरी भूरे रंग की हो गई। बृद्ध ने एक नाशपाती को सूंघा। “मुझे लगता है कि यह पक गई है, और हम इन्हें खा सकते हैं”,उन्होंने कहा। उन्होंने नाशपाती तोड़ी और हर ग्रामीण को एक नाशपाती दी। उन्होंने सबसे बड़ी और पक्की हुई नाशपाती लियांग को दी।

“मीठी रस भरी और स्वादिष्ट”, लोगों ने कहा। सन्यासी के जादू से सब आश्चर्यचकित हो गए।

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