लेखनी कहानी - शारदा देवी का भूत
शारदा देवी का भूत
यह सत्य घटना है शारदा देवी के बारे में। शारदा देवी का जन्म गुजरात के भनगौर गाव में हुआ था। और उनका विवाह पोरबंदर शहर के व्यापारी जीवनलाल के साथ हुआ था। जीवनलाल एक सयुंक्त परिवार में रहते थे। कुल पाँच भाई और चार बहन तथा माता पिता का भरा पूरा परिवार था।
शारदा देवी ने एक पत्नी और बहू होने के सारे फर्ज निभाए। तन मन से अपने ससुराल वासियों की सेवा की। पर शारदा देवी को बदले में सुख नसीब ना हुआ। शारदा देवी की सांस और ननद शारदा देवी से जानवरो जैसा बर्ताव करते थे। उनके गहने कपड़े भी छीन लेते थे। बीमार होने पर, और गर्भवती होने पर भी शारदा देवी से घर का काम कराते थे। शारदा देवी ससुराल के अमानवीय अत्याचारो को सह सह कर जीती गयीं।
जीवनलाल कमाते तो खूब थे। पर उन्हे जुआ खेलने की गलत आदत भी थी। अपनी बुरी आदतों में मस्त जीवनलाल अपनी पत्नी के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने की बजाये अपनी माँ और बहन की बात सुन सुन कर पत्नी को ही भला-बुरा कहते रहते। और कभी कभी तो गुस्से में शारदा देवी के साथ मार पीट भी कर लेते थे।
घर का काम करने और परिवार की सेवा करने के बावजूद शारदा देवी को दुख और तकलीफ़ें मिलने की वजह से उनका जिंदगी से जी भर गया। और तकलीफ में खुद के पति को अपने साथ ना पा कर, शारदा देवी ने जिंदगी का दामन छोड़ दिया।
ऐसा कहा जाता है के शारदा देवी ने जानबूझ कर गर्भावस्था के दौरान देसी घी के लड्डू भर पेट खाये थे। ताकि गर्भावस्था में उन्हें जहर चढ़ जाये और खुद की जान निकल जाए।
पत्नी की मृत्यु से जीवनलाल और उनके दोनों बच्चे दुखी हुए। और शारदा देवी की सांस और ननद को कई बार शारदा देवी की आत्मा ने अपने होने का अहसास दिलाया था।
एक बार की बात है जब शारदा देवी की ननद ने उनका सोने का हार पहना था तब शारदा देवी की आत्मा ने उन्हे धक्का दे कर गिरा दिया था और उनकी छाती पर शारदा देवी की आत्मा बैठ गयी थीं। और जब तक उनकी ननद ने शारदा देवी का वह हार गले से नहीं निकाला तब तक उनको जमीन से उठने नहीं दिया था।
शारदा देवी के स्वर्गवास के उपरांत, जीवनलाल परिवार के किसी प्रसंग में जाते थे, तो अपनी मृत पत्नी को याद कर के रो देते थे। और कहते थे कि काश मैंने अपनी पत्नी की तकलीफों को समझा होता तो जिंदगी कुछ और होती।
शारदा देवी की सांस दिवालीबहन का स्वर्गवास भी 103 वर्ष की आयु में हुआ। अपने कर्मो के कारण अपने अंतिम दिनो में दिवालिबहन पाँच पाँच पुत्रो की माता होते हुए भी सब पर बोख बन कर जीं। शारदा देवी की ननद आज भी अपनी आखिरी साँसे गिन रहीं हैं उनकी आयु 80 साल है, और वह पोरबंदर के खारवा-वाड विस्तार में पुराने खंढर जेसे मकान में लावारिस की तरह पड़ी हुई है।
शारदा देवी के गहने और कपड़े आज भी उनकी वृद्ध ननद के कब्जे में है, पर वह उठ कर उसे ना तो देख सकती हैं, ना ही उन्हे छु सकती है। ऐसा लगता है के शारदा देवी की आत्मा ना तो अपनी ननद को मरने दे रहीं है ना तो उसे माफ कर रही है।
महत्वपूर्ण सूचना इस लेख में लिखे गए पारलौकिक शक्तियों के प्रभाव और उनके अस्तित्व पर जो भी टिप्पणिया की गयी है, वह सिर्फ लेखक के विचार,अनुभव,एकत्रित की हुई इन्फॉर्मेशन और अन्य व्यक्तियों के अपने साथ हुए अनुभव का वृतांत है। वैबसाइट पाठकों को किसी भी अंध श्रद्धा या तांत्रिक, ओझा , होम, हवन या किसी भी प्रकार के भूत भगाओ इलाज कराने की सलाह-सुचन नहीं देता है। पारलौकिक अनुभव, वास्तविकता में एक कभी ना सुलझने वाली पहेली की तरह होते है। इस लिए पाठक कृपया अपने विवेक से काम लें।