Madhu varma

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लेखनी कहानी - रेगिस्तान में चोटी वाले प्रेत का आतंक

रेगिस्तान में चोटी वाले प्रेत का आतंक

मेरा नाम वैभव वाघेला है। और में जयपुर का निवासी हूँ। हमारा काम शादी ब्याह में मंडप सर्विस देने का है। दुकान पर ज़्यादातर काम हमारे नौकर-चाकर करते हैं और function की साइट पर भी वही लोग मंडप लगाने जाते हैं। पूरा दिन दुकान पर टाइम निकलता नहीं है तो कई बार बाइक ले कर घूमने निकल जाता हूँ। मेरे पापा वैसे तो ठंडे दिमाग के हैं, पर काम में ध्यान ना दूँ तो इतनी खरी होती सुनाते हैं के मेरे कान के कीड़े मर जाते हैं।

इस लिए अधिक समय मुझे दुकान पर ही बिताना पड़ता है। दुकान पर मैंने टीवी भी लगा रखा है। ज़्यादा-तर मै उस पर discovery चैनल देखता रहता हूँ। बैर ग्रील्स का शो “Man Vs Wild” मेरा फेवरिट है। और उसी के चक्कर में मैने रोमांचक सफर का प्लान बना लिया था और रेगिस्तान के प्रेत से मेरा सामना हुआ था। उस भिड़ंत में मै और मुन्ना मरते मरते बचे थे।

मैंने और मेरे दोस्त मुन्ना नें एक रात रेगिस्तान में बैर ग्रील्स स्टाइल में camping करने का फैसला किया। अपने रोमांचक सफर पर निकालने से पहले हमने खाने पीने की सारी चिज़े, मैप, टेंट, चप्पू (knife), लाइटर और वॉटर साथ ले लिया। एक वीरान रेतीली जगह चुन कर वहाँ हमनें अपना टेंट लगा दिया। अंधेरा हो चला था, और ठंड भी बढ्ने लगी थी तो हमने वहाँ आग भी जला ली, खाना खा कर जैसे ही सोने लगे,,, तोह रेत में पास ही किसी के मौजूद होने की आहट आई,,,

मैंने फौरन मुन्ना को बोला की कुछ गड़बड़ है। मुन्ना नें टॉर्च निकाली और आस पास देखा तो हमे पता चला की कोई हमारे टेंट के पास बैठा है। उसकी पीठ हमारी और थी, और वह शायद सिगार पी रहा था, चूंकि धुवा निकल रहा था। सिर के बाल उसके बहुत छोटे थे और उसके सिर के पीछे एक लंबी सी चोटी थी।

हमे हैरत हुई की ऐसी वीरान जगह पर यह आदमी क्या कर रहा होगा। कुछ देर बाद हम नें सोचा की इसके पास जा कर उसे पूछते हैं की तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो। मैंने और मुन्ना नें जा कर उसे आवाज़ दी,,, पर वह पलटा नहीं। हमने फिर से उसे आवाज़ दे कर पूछा की आप कौन है? इस बार उसने हमारी और देखे बिना ही अपनी मुट्ठी में रेत भरी और पीछे हमारी और फैंकी,,,

हमे लगा की शायद यह कोई पागल सरफिरा इन्सान है। हमने दोनों नें वापिस टेंट में जाने में ही अपनी भलाई समझी। कुछ देर हुई तो वह रहस्यमय इन्सान बैठे बैठे ही हमारी और सरकने लगा। अब भी उसकी पीठ ही हमे दिख रही थी। छोटे बच्चो की तरह घीसट घीसट कर वह हमारे टेंट के दस फीट की दूरी पर आ गया। अब हमे डर भी लग रहा था। और गुस्सा भी आ रहा था। मुन्ना नें उसे फौरन ललकारा की,,, यहाँ से सीधी तरह से जाता है की,,, मार खा कर ही जाएगा? हमारे पास हथियार भी है,,,, कुछ गड़बड़ की तो जान से जाएगा,,,

मुन्ना की धम्की सुन कर वह आदमी धीमी आवाज़ में हसने लगा। अब तो मेरा भी सब्र जवाब दे गया था। मैंने मुन्ना से कहा की तू इस को दाए से घेर और में बाए से घेरता हूँ। साले को घसीट घसीट कर मारेंगे,,, रेत उड़ाता है ना आज इसकी हेकड़ी निकाल देते हैं।

जैसे ही हम उसकी दोनों और से उसके मुह की तरफ गए,,, हमारे हौश उड़ गए। हमने देखा की उसकी आंखे ही नहीं थी। वहाँ काले गड्ढे थे। और उसके हाथ में कोई सिगार नहीं थी,,, उसकी आँखों की जगह मौजूद गड्ढों से धुवा निकाल रहा था। मै और मुन्ना तो पगला गए,,, हम वहाँ से भाग कर जाते भी तो कहाँ जाते,,, घनघोर अंधेरा था। हम दौड़ कर टेंट में घुस गए। और एक दूसरे को पकड़ लिया।

अचानक वह चोटी वाला प्रेत खड़ा हो गया और हमारी और मुड़ा,,, हमे तो लगा की आज जान से जाएंगे। मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए थे। और मुन्ना तो उसकी और देख भी नहीं रहा था। टेंट के सामने आग के परे,,, वह बिना आँखों वाला खतरनाक प्रेत रुक गया, और कुछ इशारा करने लगा,,, शायद उसे कुछ चाहिए था। मैंने गौर किया तो मुझे समझ आया की उसे,,,, टेंट में पड़ी चादर चाहिए थी। मैंने फौरन उसकी और चादर और तकिया दोनों फैंक दिया। उसने फटाक से चादर ओढ़ ली और तकिया वापिस मेरी और फैंक दिया।

कुछ देर वह हमारे आस पास ही घूमता रहा,,, और फिर नजाने क्या हुआ की,,, वह दौड़ता हुआ अंधेरे में गुम हो गया। हम दोनों दोस्त मौत के खौफ से पूरी रात जागते रहे और डर के मारे कापते रहे। फिर सुबह हम घर लौट आए। उस दिन के बाद,,, माँ कसम discovery चेनल देखना छोड़ दिया है।

हमे पता नहीं की वह प्रेत क्यूँ हमारी चादर मांग गया, उसकी आंखे क्यूँ नहीं थी। और उसने हमे ज़िंदा क्यूँ छोड़ दिया। कई लोग तो हमारी बातों का विश्वास तक नहीं करते हैं। पर मुझको और मुन्ना को मालूम है की उस रात हम किस दरिंदे प्रेत की चपेट में आए थे।

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