लेखनी कहानी - नागा-साधू से भयानक मूठभेड़
नागा-साधू से भयानक मूठभेड़
मेरा नाम मयूर माधवाणी है। और मे बिंदी, पाउडर, मेक-उप वागेरा सामान का whole sell व्यापारी हूँ। मेरी दुकान राजकोट में है। वैसे तो मै भूत प्रेत और अन्य पारलौकिक शक्तियों में मानता नहीं हूँ पर एक दिन मेरे खुद के रियल अनुभव नें मेरी हुरी हेकड़ी निकाल कर रख दी।
उस दिन मै दुकान पर बैठा था। काम काज कुछ था नहीं। सुबह से एक भी ग्राहक आया नहीं था, तो दिमाग पूरी तरह से हटा हुआ था। तभी अचानक मेरा दोस्त जिगगु आया और बोला की चल यार जूनागढ़ चलते हैं। मेंने उसको कहा की वहाँ जा कर क्या करेंगे? भजिए बेचेंगे? यहा वैसे ही धंधा मंदा पड़ा है और तुझे सेल-सपाटे की पड़ी है।
जिगगु बोला की देख,,, इस वक्त तेरा धंधा भी मंदा है तो फिर,,, थोड़ा घूम कर आने मे क्या बुराई है? वैसे भी तुझे कहा पैसे देने है, पैसे तो मनीष देगा। हम दोनों उसी के पैसो पर तो बचपन से घूमते आए हैं। थोड़ी देर सोच कर मै तैयार हो गया। हम तीनों दोस्त जूनागढ़ के लिए रवाना हो गए।
पता नहीं उस टाइम क्या त्योहार था पर जूनागढ़ में काफी भीड़ थी। हर तरफ लंगोट में लिपटे नागा-साधू घूम रहे थे। काले, गोरे, नाटे, मोटे सब साइज़ के नागा-साधू वहाँ घूम रहे थे। हम तीनों दोस्त उन्हे देख कर एक दूजे के सामने हस्ते मज़ाक करते वहाँ घूमने लगे। तभी मनीष बोला की चलो गिरनार पर्वत पर चढ़ने जाते हैं।
हम तीनों फौरन वहाँ पहुँच गए। और पर्वत के ऊपर चढ़ने लगे। वहाँ भी नागा साधुओं की भरमार थी। जिगगु बोला की देख मयूर अगर तेरा धंधा युही मंदा चलता रहा तो तू भी लंगोट धारण कर के यहा सेट हो जाना। हर साल हम तुझ को मिलने आएंगे। मुझे हसी तो आई पर जिगगु पर गुस्सा भी आया। मै उसे पकड़ कर पीटने के लिए उसके पीछे भागा। दौड़ लगाते हुए थोड़ी ही दूर जा कर जिगगु सोते हुए एक नागा-बावा साधू के ऊपर गिर पड़ा।
उस साधू नें जिगगु के बाल पकड़ कर उसे पैरों से पीटना शुरू कर दिया। मै जल्दी से जिगगु को छुड़ाने लगा। तो उस साधू नें मुझे पकड़ लिया और मेरे बाल नौचने लगा। उतनी ही देर मेँ वहाँ मनीष भी आ पहुंचा। फिर हम तीनों नें मिल कर उस साधू को धोया। हमारा जगड़ा देख कर वहाँ कई लोग जमा हो गए। उस नागा-साधू नें और दो साधू को बुला लिया। अब हमे डर लग रहा था चूँकि गिरनार पर भी नागा साधू अनगिनत थे।
हम तीनों चुप-चाप पर्वत के ऊपर की और जाने लगे। हम नें मूड कर देखा तो वह तीनों नागा-साधू हमारे पीछे आ रहे थे। अब हम तीनों की फट रही थी। दिल भी ज़ोरों से धडक रहे थे। तीन लंगोट धारी पहाड़ी साधू हमारे पीछे इस तरह आ रहे थे जैसे अभी पकड़ कर हमे नीचे ही फैंक देंगे।
हम पहाड़ के ऊपर तक जा पहुंचे और रुक गए। वह तीनों हमारे पास आए। और उन्होने सीधा जिगगु को पकड़ा। मै और मनीष जिगगु को उनसे छुड़ाने लगे तो वह हमे ही घुसो और लातों से पीटने लगे। हम ज़मीन पर पड़े थे तभी वह तीनों जिगगु को हम से दूर ले गए। थोड़ी देर बाद हम खड़े हो कर अपने दोस्त को ढूंढ नें लगे।
हमे जिगगु पास ही सीढ़ियों पर बैहोश मिला। उसके चहरे पर पानी मारने से वह जाग तो गया पर वह हम से बात नहीं कर रहा था। शायद सदमें मे था। उसे संभाल कर वहाँ से उसके घर ले गए। फिर हमे जिगगु नें बताया की,,,
उन तीन नागा साधू नें उसे किसी अंधेरे कोने मेँ बैठा कर तांत्रिक मंत्रोचार किए और भभूत मिला पानी ज़बरदस्ती पिलाया। फिर उन्होने कहा की हम कुछ समय बाद तुम्हें लेने आएंगे। और हमेशा के लिए तुम को हमारी बिरादरी मेँ आ जाना होगा। और फिर वह तीनों मेरे सामने गायब हो गए।
उस घटना के बाद जिगगु दिन पर दिन पागल सा होने लगा। उसे अपने घर मेँ भी वह तीन नागा-साधू नज़र आते थे। उसने मुझ से और मनीष से बात करना भी छोड़ दिया है। उसके घर वाले भी समझ नहीं पा रहे हैं की जिगगु को कैसे ठीक करें। बार बार जिगगु येही बोलता रहता रहता की,,, मुझे वह लोग लेने आएंगे,,, मुझे उनके साथ जाना होगा,,, मै नहीं गया तो वह मुझे मार देंगे।
हम नें पुलिस फरियाद भी की, लेकिन पुलिस वालों को इस मामले मेँ कोई तुक नज़र नहीं आया। उन्होने उल्टा हमे ही डांट दिया की,,, ऐसी जगह पर धींगा मस्ती करने क्यूँ जाते हों। शराफत से घूम कर लौट आते तो कुछ नहीं होता।
कुछ दिनों पहले जिगगु गायब हो गया था। और जब उसे ढूंढा गया तो वह काफी बीमार और गुम-सुम सा था। करीब दो-तीन दिन अस्पताल मेँ रहने के बाद डॉक्टर नें उसे घर ले जाने को कहा। उसी रात जिगगु को हार्ट-अटेक आया और उसकी मौत हो गयी। डॉक्टर भले ही मौत की वजह हार्ट-अटेक बताए पर मै और मनीष जानते हैं की हमारे दोस्त की मौत की असली वजह वही तीन भयानक नागा साधू हैं।