गरीबी
आंखे भारी हैं पानी से पेट खाली हैं..
गरीब की ज़िन्दगी जैसे महामारी हैं..
दुनिया के रंग से इसका रंग भद्दा हैं..
फैला कर हाथ ओरो के सामने..
एक पेट ज़िन्दा हैं,
उठाकर बोझ अमीरो का इनके पेट पालते हैं.
अगर ना बैठे कदमो मैं रईसो के..
तो बच्चे भूक से मरते हैं.....
बैठ कर कदमो मैं इंसान के दो रोटी से पेट भर रहा हैं.
आँखों मैं नहीं हैं रौशनी.....
फिर भी काम कर रहा हैं.....
खुद की उम्र हैं खिदमत की....
ओरो की खिदमत कर रहा हैं....
उठाकर बोझ गैरो का तो खर्चा चल रहा हैं...
अमीरी हाथ समेटती हैं...
गरीबी हाथ फैलाती हैं...
गाव की मिट्ठी हैं...
गरीबी हर पैर से खुछली जाती हैं...
गरीबो के कपडे मज़ाक बन जाते हैं..
अमीरो के फ़टे कपड़े फैशन नज़र आते हैं...
दुनिया के ये क़िस्से क्यो आ रहे हैं गरीब के हिस्से..
फ़िज़ा तन्वी ✍️✍️
Swati chourasia
23-Sep-2021 09:04 PM
Very beautiful 👌👌
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
23-Sep-2021 08:20 PM
मार्मिक रचना
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آسی عباد الرحمٰن وانی
23-Sep-2021 08:16 PM
Nice 🙂
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