" आंचल "
" आंचल "
मां तेरे आंचल के जैसी,
ना कोई छाया है,
मां की ममता के आगे तो,
ईश्वर ने भी शीश नवाया है।
मां मेरे अस्तित्व में,
तेरी छवि झलकती है,
देखा जो आयना तो जाना,
तू बिल्कुल मेरे जैसी दिखती है।
मां तेरी परछाई हूं मैं,
प्रतिबिंब हूं तेरे अस्तित्व की,
तेरी ममता की छाया हूं,
पुरवाई हूं तेरे आंचल की।
जाती हूं जब मैं गांव तेरे,
तू बनती है पहचान मेरी,
ये मन हर्षित हो जाता है,
जब कोई तेरे जैसी मुझे बताता है।
खुद जब मैं बनी एक मां,
तो जाना तेरी ममता का राज,
कि सौ दर्दों को सहकर भी,
तुझे कैसे मुस्काना आता है।
कैसे अनकही बातों को भी,
तू पल में समझ जाती है,
तभी तो मां बच्चों का,
हर हाल में साथ निभाती है।
सीप में जैसे मोती रहे,
वैसी सुरक्षा तेरे आंचल की,
हवा के ठंडे झोंके सी,
शीतलता तेरी छाया की।
सूरज की किरणों के जैसी,
उज्जवलता तेरे व्यक्तिव की,
ईश्वर के अस्तित्व के जैसी,
पावनता तेरी ममता की।।
स्वरचित/मौलिक/
कविता गौतम ✍️
Seema Priyadarshini sahay
24-Sep-2021 10:15 PM
बहुत सुंदर और बहुत सटीक
Reply