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पनघट




गोरा तन है गोरी बाहें 
लेकर फिरती मेरी चाहें ।
छुई-मुई पनघट पर बैठी
सोच रही है कैसे थाहे ।।

जिस पर हमने किया भरोसा
वह गलती थी खुद को कोसा ।
चतुर बुद्धि की देवी जैसी
हमको तो तू लागे घोषा ।।

अगुली है शोभा की खान
बडा करो जो तेरा विधान ।
जिस पर तू किरपा बरसये
हो जायेगा गुण की खान ।।

बौना है वह समझ न पाये 
लक्ष्मी को ही कथा सुनाये ।
नैया डूब रही है उसकी
उल्लू दिन पर देख न पाये ।।


डॉ दीनानाथ मिश्र

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4 Comments

Gunjan Kamal

09-Apr-2023 08:42 PM

शानदार

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Sachin dev

07-Apr-2023 06:23 PM

Nice

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Reena yadav

07-Apr-2023 03:24 AM

👍👍

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