बेटियाँ
बेटियाँ
एक बार मैं सो रहा था,सपनो में खो रहा था।
नदी किनारे बैठे-बैठे,लहरो को निहार रहा था।
पूनम की शीतल चाँदनी में,बहुत मजा आ रहा था।
परीलोक से परियाँ आना,आते ही नदी में नहाना
जल में अठखेलियाँ करना, नदी से बाहर आना
अपने केशों से पानी झाड़ना, मेरे बदन पर ठंडी फुहारों का गिरना,जिंदगी का सबसे अच्छा पल था।
मैं बोला पारियाँ रानी, मनमोहक हैं रूप तुम्हारा,बदन तुम्हारा पानी पानी।
परियाँ ही हैं सभी बेटियाँ, भ्रूण हत्या करने में लाज नही आती तुमको।
कोई नही मारे बेटियों को,ये संदेश पहुँचाओ जन-जन को।
ये तीर्थ पुण्य की पावन भूमि में,क्यों बीज पाप के बोते हो,
अपने जीवन में क्यों ,काला दाग लगाते हो
बच्ची,बच्चा एक समझकर , ईश्वर का वरदान समझकर,
अपनी अपनी आँखे खोलकर, मानवता का धर्म निभाओ।
इतना सुनते ही मुझको ,शर्मिंदगी होने लगी।
पूनम वाली रात चाँदनी, अमावस्या सी होने लगी।
परियाँ रानी बात आपकी, जन-जन तक पहुँचाऊँगा।
अमावस्या की काली रात में उजाला भर जाऊँगा।
मोहनलाल जॉंगिड़, पुत्र श्री चिरंजीलाल जाॉंगिड़
गाँव- कोलिड़ा ( सीकर,राज.)
9982167799