जमीन
"जमीन"
रह कर जमीन पर
आसमां में उड़ने के
ख्वाब देखते हैं हम
न जाने क्यूं खुद ही
जड़ों से अपनी दूर होते हैं हम ।।
कोशिशें किए बगैर ही
हर ख्वाब पूरा हो जाए
न जानें क्यूं ऐसी नादान खता
करते हैं हम ।।
बहुत कुछ किए बगैर ही
मंजिल पर अपनी पहुंच जाएं
न जाने क्यूं सोच ऐसी
रखते हैं हम ।।
गलत रास्ते हमें लुभाते बहुत हैं
ये जानते हैं हम
फिर भी न जाने क्यूं उन पर
चलते हैं हम ।।
भूल चुके हैं शायद ये हम
कि दूर होकर जमीन से
वजूद अपना खो चुके हैं हम
फिर भी न जाने क्यूं खुद ही
जड़ों से अपनी दूर होते हैं हम ।।
"स्वरचित"
कविता गौतम✍️
# लेखनी
# लेखनी कविता
Fiza Tanvi
29-Sep-2021 10:13 AM
Waah bahut sunder rachna he
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
28-Sep-2021 09:21 PM
Good
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Fiza Tanvi
28-Sep-2021 08:48 PM
Good
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