खामोशियाँ
खुशियों की गठरी सिरहाने रख
चल देते हो सुनो
ठहरो न
यह खामोशियां जो फैली है आसपास
कम करने का उन्हें कोई उपाय ले आओ अपने मौन को मुखर कर दो
सिर्फ एक पहर के लिए
बाकी का समय मैं देख लूंगी
तुम तो पूरा आसमां उठा लाए हो
चांद तारों की जगमगाहट वाली
मेरी चौखट है इतनी छोटी
कहाँ समा पाएगी
सुनो कुछ ऐसा करो न
गठरी में वक्त भरकर ले आओ
बचे हैं जितने लम्हें जिंदगी के
चलो न चांद के उस पार संग बैठ बिताएं बनाये उन लम्हों को यादगार
जो फिर फिर यादों में आकर
तुम्हारे स्पर्श की याद दिलाएगी
अर्चना तिवारी
बरोडा,गुजरात
Archana Tiwary
19-Mar-2021 11:03 PM
Thanq
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Satesh Dev Pandey
11-Mar-2021 08:27 PM
बहुत सुन्दर रचना
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Aliya khan
10-Mar-2021 02:20 AM
Nice
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