Archana Tiwary

Add To collaction

जिंदगी

जिंदगी को जितना समझना चाहती हूं 

एक अबूझ पहेली बन सामने आती है 
कभी तो बहुत सताती है 
कभी सहेली  बन मनाती है 
कभी किसी खास से मिलने की 
आस जगाती है 
तो कभी खुद खास बनने की 
प्यास जगाती है 
कभी इतने लब्ज देती है कि 
सामने वाला सुनकर थक जाए 
तो कभी शब्दों को अपने अंदर छुपा लेती है कभी मीठे सपनों की दुनिया में ले जाती है 
तो अगले ही पल नींद से जगा 
सपनों को तोड़ देती है 
ऐ जिंदगी पहेली मत बन 
कभी चुपके से कानों में गुनगुना 
दिखा जा उन राहों को 
धुंध से जो गिरी है 
ऐ अबूझ ज़िन्दगी कभी तो आ 
चुपके से दिखा  उन राहों को
अर्चना तिवारी

   4
2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

05-Oct-2021 11:57 AM

Nice

Reply

🤫

30-Sep-2021 03:11 PM

वेरी...नाइस

Reply