जिंदगी
जिंदगी को जितना समझना चाहती हूं
एक अबूझ पहेली बन सामने आती है
कभी तो बहुत सताती है
कभी सहेली बन मनाती है
कभी किसी खास से मिलने की
आस जगाती है
तो कभी खुद खास बनने की
प्यास जगाती है
कभी इतने लब्ज देती है कि
सामने वाला सुनकर थक जाए
तो कभी शब्दों को अपने अंदर छुपा लेती है कभी मीठे सपनों की दुनिया में ले जाती है
तो अगले ही पल नींद से जगा
सपनों को तोड़ देती है
ऐ जिंदगी पहेली मत बन
कभी चुपके से कानों में गुनगुना
दिखा जा उन राहों को
धुंध से जो गिरी है
ऐ अबूझ ज़िन्दगी कभी तो आ
चुपके से दिखा उन राहों को
अर्चना तिवारी
Seema Priyadarshini sahay
05-Oct-2021 11:57 AM
Nice
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🤫
30-Sep-2021 03:11 PM
वेरी...नाइस
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