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दुनिया





दुनिया का उत्कर्ष यही है
कह कर बात बदलना ।
तन को ढकने वाला पिछडा
अगडा नंगा चलना ।।
चतुर वही मक्कार बहुत हो
मूर्ख बात पर टिकना ।
कुत्तों की परवरिश अनोखी
क्रोध प्रशंसा करना ।।
निजता में ताका-झाकी है
परम स्वार्थ मे रहना ।
धन से मान खरीदे जाते
पाखण्डो का गहना ।।
लाज बेचते धन पर देखा
मन को बेच खिलौना ।
नये रंग मे रोज उतरते
नीति-नियत सब बौना ।।
त्याग-नेह -ममता झूठा अब
कलुषित भाव है गहना ।
दया-क्षमा सब अर्थ हीन है
शोषण करते रहना ।।



डॉ दीनानाथ मिश्र

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2 Comments

Renu

09-May-2023 06:31 PM

👍👍

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Varsha_Upadhyay

08-May-2023 11:37 PM

Nice 👍🏼

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