Arpit urmaliya

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स्वांग


धर्मो का गूढ़ भूला कर के,
शब्दो का मूल फिरा कर के,
वो धरम बचाने आए है,
धर्म की बलि चढ़ा कर के ।

नैतिक वचनों के खातिर,
विनाश कहा का धर्म कहे,
कहा कहे की सखा वही,
जो मूक अधर्म में दंभ भरे ।

जो न होते पितामह और कर्ण साथ,
क्या सुयोधन फिर भी लड़ सकता,
बिना कुरुक्षेत्र के समर शूल से,
फिर जयसहिता सफल होता ??

वो काल जहा पर नारायण
खुदा गीता में धर्म सिखाते है,
वो काल जहा पर नारायण,
उद्धव को धर्म बताते है।  

समकालीन है दृश्य यह भी,
जब सकुनी के पासे फेके जाते है,
अंधे की अंधे ज्वाला में ,
कुरूवंश जलाए जाते है ।।

धर्मो का उल्टा पाठ पढ़ा कर के,
सुयोधान को भड़काया था,
मैत्री की झूठी परिभाषा से,
राधेय को उकसाया था।।

भीष्म पितामह को जिसने,
जमदागिनीय का ज्ञान भुलाया था,
एक छोटे से वचन के खातिर,
कुरु को चौसर में सजवाया था ।।

अब न नारायण भी जिंदा है,
जो धर्म अधर्म को बता सके,
पर न जाने कितने सकुनी,
दुरियोधन के कान भरे ।।

जो पुंडरीक के भेष में,
धर्मो का पाठ पढ़ाते है
वो अपने उल्लू के खातिर,
हमको ठेंगा दिखलाते है ।।

वो धर्म के प्ररेंता बन,
धर्मो के बात बताते है, 
वो धर्म बचाने आए है,
खुद धर्मो की बलि चढ़ते है ।।

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5 Comments

Reena yadav

23-May-2023 06:55 AM

👍👍

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Abhinav ji

23-May-2023 12:59 AM

Very nice 👍

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