निरुपमा–43

पर प्राणों की होती है।" कमल का मजाकवाला भाव बदल गया। निरुपमा कुछ विचलित हुई, पर सँभल गई। कमल कहती गई, "तुम्हारी संस्कृति की छाप, तुम पर गहरी होती जा रही है

और इसलिए अपने यहाँ की पर्दा-प्रथावाली देवियों को-जैसे तुम इस प्रसंग को पर्दे में रखना चाहती हो, पर यह अगर प्राणों पर पड़ता हुआ पर्दा है, तो निश्चय यह सदा के लिए पड़ा ही रह जाएगा।"

"हाँ, यह तो।" निरुपमा लजाकर बोली।

"यानी?"

"यानी और क्या? तुम ठीक कहती हो।" बदल गई।

"निरू!" कमल स्नेह के आवेश में आ गई, "मैंने बाबा से बहुत तरह की बातें तुम्हारे और तुम्हारे मामा के संबंध में सुनी हैं; पर तुमसे नहीं कहीं।"

निरुपमा जीती। हृदय को दबाकर, सँभली हुई, सखी के हृदय को खोल दिया।

स्नेह से हाथ पकड़कर कहा, "तो तुमने मुझसे छिपाया-यह स्नेह-व्यवहार न था।"

"हो, न हो; पर आज इसीलिए मैं तुमसे मिलने आई थी। यामिनी बाबू से तुम्हारा विवाह हो रहा है, यह लखनऊ-भर के बंगाली जानते हैं।

मैंने एक चिट्ठी उनकी तुम्हारे तकिए के नीचे देखी है। पढ़ी भी है। इसलिए जानना चाहती थी कि यह विवाह तुम कर रही हो, या तुम्हारे मामा कर रहे हैं?"

"इसीलिए मैं नहीं कह पा रही थी, भगवान ने पुनरुक्ति से बचा लिया। मेरे कहने से पहले सब कुछ तो मालूम ही कर चुकी हो।

मेरा जो कहना है, वह मैं कह चुकी हूँ। और, तुम जानती हो, क्लास की लड़कियों के नाटक में प्रेम की बातें सुनकर मैं हँसती थी। भड़कंकड़ साहब को क्या सूझा, बैठे-बिठाए मेरा पढ़ना बंद करा दिया!"

कमल खुलकर हँसी, "उसे तो तुम अपना मनोभाव लिखकर भले आदमी की तरह उत्तर दे सकती थीं! मामा को पत्र दिखाने की क्या बात थी?"

"अब क्या बताऊँ, मेरी गलती! उत्तर न भी देती।" निरुपमा शून्य दृष्टि से कुछ देर तक रेजीडेंसी की ओर देखती रही, फिर कहा, "अच्छा, कौन-सी बातें तुमने अपने बाबा से सुनी हैं?" ।

"तुम्हारे मामा पर बाबा विश्वास नहीं करते। उनका खयाल है, तुम्हारी जमींदारी पर तुम्हारे मामा की मामूली निगाह नहीं।"

"पर मामा मेरी जमींदारी ले तो सकते नहीं।"

"जमींदारी की आमदनी तो ले सकते हैं। क्या तुम्हें मालूम है, तुम्हारी जमींदारी की कितनी आय है और तुम्हारे बाबा के देहांत के बाद अब तक कितना रुपया तुम्हारे नाम जमा हुआ?"

"निकासी वगैरह तो मालूम है, क्योंकि बाबा के वक्त इसकी काफी बातचीत सुन चुकी हूँ। मामा काम सँभाले हुए हैं, कुछ कहने-सुनने की उन्होंने कोई जरूरत नहीं समझी होगी।" सीधे कहकर निरुपमा विचार में पड़ गई, जैसे यह एक बात ध्यान देने की हो।

   0
0 Comments