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पर प्राणों की होती है।" कमल का मजाकवाला भाव बदल गया। निरुपमा कुछ विचलित हुई, पर सँभल गई। कमल कहती गई, "तुम्हारी संस्कृति की छाप, तुम पर गहरी होती जा रही ...