निरुपमा–47
"मेरा विचार है, एक बार कुछ दिन रामपुर रह आऊँ।"
"लेकिन," वृद्ध सोचते हुए बोले, "बड़ी दिक्कत होगी। गर्मी है।
देहात में तुम्हें अच्छा न लगेगा। वहाँ मिलनेवाली भी कोई नहीं।
अकेली, फिर हिंदुस्तानी हमें कुछ नीची निगाह से देखते हैं," हँसकर बोले, "मछली का तो वहाँ अध्याय समाप्त है।"
"बाबा के साथ मैं एक बार हो आई हूँ। मेरा खूब जी लगता है।
देहात की हवा अच्छी होती है और अभी नहीं, जून में जाना चाहती हूँ।
आमों की फसल होगी।"
"अच्छा," धीमे स्वर से योगेश बाबू बोले, "तुम्हारे दादा साथ जाएँगे, और?"
"और नीली।"