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पर्यावरण

गरज-गरज रह जाए मेघा, 

पेड़ नहीं कैसे आएंगे।
चोली-दामन के साथी हैं,
तन्हा कैसे रह पाएंगे।

नहीं उठेगी महक सुहानी,
इस सौंधी-सौंधी मिट्टी से।
बारिश की बूंदें कब होंगीं,
नद कहाँ शिलाहरि गिट्टी से।

नील गगन में इन्द्रधनुष भी,
सतरंगी कब दर्शन देगा।
गर्मी से राहत पाने को,
तपता सूरज कहाँ छिपेगा।

मोर पपीहा पीहू-पीहू,
कोई सुने कब टेर उनकी।
कैसे उफनेगी कालिंदी,
मधुर गूंज कब वंशी धुन की।

कैसे सांस मिलेगी तुमको,
कौन माहौल शुद्ध करेगा।
कौन सहे सूरज की गर्मी,
तरु बिना जल-जल के मरेगा।

कहाँ उगे संजीवन बूटी,
हनुमान कहाँ से लाएंगे।
क्या लखन बेसुध ही रहेंगे,
कब सूर्योदय कर पाएंगे।

कहाँ कुलांचे भरे कुरंगम,
न वन कस्तूरी महकाएगी।
बिन पानी के तिरक-तिरक "श्री",
प्यासी धरती फट जाएगी।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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8 Comments

खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति

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Madhumita

06-Jun-2023 07:43 PM

Nice

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Sushi saxena

06-Jun-2023 03:45 PM

बहुत खूब

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