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रिस्तें-13-Jun-2023

कविता-बदलते रिस्तें

अब तो रिस्तों पर भरोसा न रहा
रिश्तों का रंग
अपनों के संग
होते हैं गाढ़े
सदा के लिए
न होते दुरंग
न होंगे
कभी भी
न बदलेंगे 
ये बनते रिस्ते,
ये पवित्र
अनमोल
सुवाच
मजबूत
भरोसे पर टिका रिस्ता न रहा,
अब तो रिस्तों पर भरोसा न रहा। 
रिस्तें,
बहनों संग पवित्र
भाइयों का बल
पिता का प्यार
मां की ममता
आत्मविश्वास
पड़ोसियों,
गैरों में
अपनेपन के
सस्ते रिस्ते अब सस्ता न रहा,
अब तो रिस्तों पर भरोसा न रहा। 
रिश्ते,
बनते हैं
बिगड़ते हैं
टूटते हैं
जुड़ते हैं
पर अब
रिश्ते,
बदलने लगे हैं
अब कोई रिस्तों का प्यासा न रहा,
तभी तो रिस्तों पर भरोसा न रहा। 
रिश्तों में
घुल रहे हैं
कड़ुआहट
चिड़चिड़ाहट
रिश्तों में
बन रही हैं 
दुरियां
मजबूरियां
बेखौफियां
अब पता नहीं क्यों!
मिठास रिस्ते की अभिलाषा न रहा,
तभी तो रिस्तों पर भरोसा न रहा। 
रिस्तें,
बदल गये
स्वार्थ में
विश्वासघात में
लालच
परिहास में
कलह
कुरंग
कर्कश 
व्यवहार में
अरे!अब 
रिस्ते का ढांढस दिलासा न रहा,
अब तो रिस्तों पर भरोसा न रहा। 

रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर। 

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3 Comments

वानी

24-Jun-2023 07:57 AM

Nice

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Abhilasha Deshpande

22-Jun-2023 03:20 PM

ला जवाब कविता भैया

Reply

Gunjan Kamal

14-Jun-2023 06:49 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌

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