तुम

एक खुली किताब जैसा तुम्हें पढ़ा

कभी तुम्हें एहसासों में पढ़ा 
कभी तुम्हें जज्बातों में पढ़ा 
मैंने हर बातों में तुम्हें पढ़ा।

कभी तुम्हारी खुशी को पढ़ा,
कभी तुम्हारे गम को जाना 
तेरे ख्वाबों के हर पन्ने को,
दिल से मैंने पढ़ा ।

कभी तुम्हारे आंसुओं को पढ़ा  
कभी तुम्हारी तन्हाई  को भी पढ़ा 
बंद पड़े तुम्हारे हर उस 
अपनेपन को भी पढ़ा ।

कुछ पन्ने तुम्हारी
किताब के ऐसे भी पढ़े 
जहां धूल धूमिल कुछ 
तुम्हारी यादों के पन्ने थे
उसे प्यार से साफ करके 
उन यादों को भी पढ़ा।

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5 Comments

kashish

18-Jul-2023 02:44 PM

मनमोहक

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Punam verma

20-Jun-2023 08:46 AM

Nice

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Abhinav ji

20-Jun-2023 07:53 AM

Very nice 👍

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