Add To collaction

मातम

शर्मसार हो गई मानवता,

कैसा मंजर छाया है,
जहर घुल गया है फिजा में,
हवाओं में जहर मिलाया है,
जिसने भी देखा,
सिसक उठा है।
आत्मा भी चीत्कार उठी,
कौन दरिन्दा कहाँ से आया??
भेड़िए की खाल में छिपके आया।
मानव नाम पर कलंक छा गया।
हिंसक जुबान लार बहाए,
वासना हावी हो जाए।
खेलती बच्ची के पास आ गया,
10 का नोट उसे दिखाया।
मेरी कोई बहन नहीं है!!
क्या तू मेरी बहना बनेगी??
सात वर्षीया खुश हो गई!
उछल-कूद मगरूर हो गई!!
10 रुपए की टाॅफी लाई।
हँसते मुस्कराते खाती आई!!
दरिन्दे ने दाँत दिखाए, 
बड़े-बड़े नाखून छिपाए।
प्यार से बोला, बहुत टाॅफियाँ।
चल मेरे संग तुझको दूँगा!!
मासूम उसके संग चली गई। 
बहन बनाके बेचारी छली गई!!
भेड़िए ने नोचा खसोटा!!
मास का लोथड़ा बना के छोड़ा!!
अंग-अंग से लहू की धारा!
सिर्फ सांसें शरीर बेजान बेचारा!!
माँ की चीखों से अस्पताल दहल रहा!
फिजा स्तब्ध थी!
क्या जंगल से जंगली जानवर आया??
अरे!! नहीं! नहीं! समाज का इंसानी कुत्ता,
भेड़िए की खाल में छिप कर आया!!
बेचारी का क्या दोष था??
कोई बताएगा!! बेचारी का क्या दोष था??
शायद बेटी होना!!!
भोग्या ही तो हैं ये!!!
कोई उम्र देखता है कोई नहीं!
झपटते तो सब ही हैं!
कैसा समाज है??
महिलाओं के लिए जंगल!!!
लड़की बच जाए प्रार्थनाओं के उच्च स्वर!!
कहीं फुसफुसाहट बच गई तो जीवन भर का दंश!!!
सांसें उखड़ रही थी कितना दर्द झेलती??
तेज हिचकी के साथ प्राणों ने शरीर छोड़ दिया।
माँ जोर से चीख पड़ी!!
सब कुछ स्तब्ध! मातम छा गया!!
संस्कार हीन समाज का चेहरा मुंह चिढ़ा रहा था!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


   28
9 Comments

मार्मिक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,,

Reply

Punam verma

12-Jul-2023 04:59 PM

🙏

Reply

Suryansh

12-Jul-2023 07:30 AM

यथार्थ और मार्मिक,,,, अभिव्यक्ति

Reply