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झरोखे

झरोखे
मुक्तछंद

इस दिल के झरोखे में यादें तुम्हारी
 रहती हैं बनकर कोई अनमोल धरोहर
 जिन्हें छुपा कर रखती हूँ मैं 
जमाने की नजरों से
 कहीं लग न जाए इन्हें किसी की नजर 
यह अनकही सी प्रीति है
 जिसमें न ही प्राप्त करने की लालसा है
न खोने का भय 
न पाने की चाह है
न हासिल करने का अहम
 न ही कामनाओं की असंतुष्टि है
न विरह की वेदना
न तो अतृप्त है यह मन 
न ही भर सका तुमसे कभी
नयन परिधि से दूर रहकर भी
 रहते हो तुम मेरे हृदय के इतने निकट
 जैसे बरखा के बादल 
पुष्प के सुगंध
 नदी के किनारा
 मन के विचार
 गगन के इंदु
हृदय के धड़कन
देह के साँस
रवि के किरण
दीप के शिखा
उपासक के आस्था
गृहस्थ के जिम्मेदारी
ऐसे ही रहते हो हर क्षण मेरे साथ
 तुम्हें प्रेम करने के लिए
 तुम्हारा सामने होना जरूरी तो नहीं
 तुम्हारे एहसासों से भी प्रेम है
 उन विचारों से भी लगाव है जिनमें हो तुम
उन ख्यालों के प्रति भी आसक्त है मेरा मन
 जिनमें तुम्हारी स्मृतियों के चित्र हैं  जीवंत
नहीं कभी ठंडी होगी इस प्रेम की तपिश
 अनवरत जलती रहेगी मेरे हृदय के निलय में
 अखंड ज्योति की तरह
तुम्हारे पावन प्रेम की लौ
 मेरी अंतिम श्वांस के साथ ही 
विलग हो पाओगे तुम मुझसे...।

प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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4 Comments

बेहद खूबसूरत रचना और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Reena yadav

14-Jul-2023 12:13 PM

👍👍

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Shahana Parveen

14-Jul-2023 09:39 AM

सखी जी कमाल कर दिया 🎉🎉💞💞

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