प्रतिबिम्ब

🌸प्रतिबिंब🌸

नाज़ुक भावों की पुष्प मालिका,
मन की बगिया को सजा गई।

ज्यों धवल चांदनी में नवयौवना
निज प्रतिबिंब से लजा गई।

इठलाती मदमाती छवि
मन की वीणा को बजा गई।

नव बिहग बिहान बटोही सी
आभा अरुणिम सम कहां गई।

सपनीले स्वर्णिम सृष्टि संग,
सकल धरा मन रमा गई।

पल पल हर पल  मोहक मधु सी
मधुता बिखेर दो बता गई।

एक मद्धिम सी आहट जैसी
ज्यों सांसों में समा गई।

सहज बिंब के नव प्रतिबिंब बन
कुछ नव रंगों को दिखा गई।

बरसों से तरसे नयनों में
बनी नीर और समा गई।

नरसिंह हैरान जौनपुरी मुंबई
7977641797

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2 Comments

Niraj Pandey

11-Oct-2021 12:18 AM

बहुत खूब

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Swati chourasia

10-Oct-2021 07:51 PM

Very nice

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